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________________ जैनदर्शन वह निमित्त या सहकारी कारण कहा जाता है। घटमे मिट्टी उपादान कारण है; क्योकि वह स्वयं घडा बनती है, और कुम्हार निमित्त है; क्योकि वह स्वयं घडा तो नही बनता, पर घडा बननेमे सहायता देता है। प्रत्येक सत् या द्रव्य प्रतिक्षण अपनी पूर्व पर्यायको छोडकर उत्तर पर्यायको धारण करते है, यह एक निरपवाद नियम है। सब प्रतिक्षण अपनी धारामे परिवर्तित होकर सदृश या विसदृश अवस्थाओमे बदलते जा रहे है। उस परिवर्तन धारामे जो सामग्री उपस्थित होती है या कराई जाती है उसके बला-बलसे परिवर्तनमे होनेवाला प्रभाव तरतमभाव प्राप्त करता है । नदीके घाटपर यदि कोई व्यक्ति लाल रंग जलमे घोल देता है तो उम लाल रगको शक्तिके अनुसार आगेका प्रवाह अमुक हद तक लाल होता जाता है, और यदि नीला रंग घोलता है तो नीला । यदि कोई दूसरी उल्लेखयोग्य निमित्तसामग्री नही आती तो जो सामग्री है उसकी अनुकूलताके अनुसार उस धाराका स्वच्छ या अस्वच्छ या अर्धस्वच्छ परिणमन होता जाता है । यह निश्चित है कि लाल या नीला परिणमन, जो भी नदीको धारामे हुआ है, उसमे वही जलपुञ्ज उपादान है जो धारा बनकर बह रहा है; क्योकि वही जल अपना पुराना रूप बदलकर लाल या नीला हुआ है । उसमे निमित्त या सहकारी होता है वह घोला हुआ लाल रंग या नीला रंग । यह एक स्थल दृष्टान्त है-उपादान और निमित्तकी स्थिति समझनेके लिए। मै पहिले लिख आया ह कि धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, कालद्रव्य और शुद्ध जीवद्रव्यके परिणमन सदा एक से होते है; उनमे बाहरी प्रभाव नही आता, क्योकि इनमे वैभाविक शक्ति नही है । शुद्ध जीवमे वैभाविक शक्तिका सदा स्वाभाविक परिणमन होता है। इनको उपादानपरम्परा सुनिश्चित है और इनपर निमित्तका कोई बल या प्रभाव नही होता । अत. निमित्तोको चर्चा भी इनके सम्बन्धमे व्यर्थ है । ये सभी द्रव्य निष्क्रिय है । शुद्ध जीवमे भी एक देशसे दूसरे देशमे प्राप्त होने रूप
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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