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________________ श्री भगवती सूत्र नाणे निसिहति वक्तवं सिया ?, हवा भगवं कज्जमाणे कडे जाच चिसित्ति चचव्वं सिया, से तेणणं गोयमो ! जे मियं मारेइ से मियवेरेणं पुढे, जे पुरिस मारेइ से युरिसवेरेण पुढे, ।। अंतो छएहं मासाणं मरइ काइयाए जार पंचहिं किरियाहि पुटठे, वाहिं छएह मासाण मरइ काड्याए नार परियावणियाए चउहि किरियाहिं 'पुढे ॥ -श्री भगवती सूत्र, शतक प्रथम, उद्देश ८ सूत्र ६८॥ टीका-'कच्छसि पशि 'कच्छे' नदीजलपरिवेष्टिते वृक्षादिमति प्रेदेशे दहंसि वति हदे प्रतीत्वे 'उदगसि वत्ति उदकेजलाश्रयमाचे 'दवियसि वत्ति 'द्रविके' तृणादिद्व्यसमुदाये बलयंसि वत्ति वलये वृताकारनद्याद्य दककुटिलगतियुक्तपदेशे 'नूमसि वत्ति 'नूमे' अवतमसे 'गहणेसि वत्ति 'गहने' वृक्षवल्लीलतावितानवीरुत्समुदाये 'महण विदुग्गसि च'त्ति गहनविदुर्गे, पर्वतैकदेशावस्थितवृक्षवल्ल्यादिसमुदाये पव्वयसि व' त्ति पर्वते 'पव्वय विदुग्गंसि वत्ति पर्वतसमुदाये 'वणंसि वत्ति 'वने एकजातीयवृक्षसमुदाये 'वरणविदुग्गसि वत्ति नानाविधवृक्षसमूहे 'मिगविचीर'ति मृगै-हरिणैचि-जीविका यस्य स मृगवृत्तिक, स च मृगरक्षकोऽपि स्यादिति अंत आह - मियसंकप्पे'त्ति मृगेषु संकल्पो-वधाध्यवसायः छेदन कर
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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