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________________ श्री भगवती सूत्र 1 गयाए ताव च गं से पुरिसे काय ए हिगरणियाए पाउसियाए परिवावरियाए चउहि किरियाहिं पुट्ठ े, जे भविए उदवण्याएव बंधण्याए वि मोरया वि ताव चरण से पुरिसे काइयाए गिरशियाए पाउसियाए जाव पंचहि पुटठे से तेराटठे जाव पंच करिए, (सू० ६५ पुरिसे भते ! कच्छसि वा जाव वणविदुग्गसि वा तण इ ऊसवियं २ अगणिकाय निस्मरइ ताव च णं से भते । से पुरिसे कति किरिए १, गोयमा । मिय ति किरिए, सिय चउ कि० सिय पंच०, से केटठे ? गोयमा । जे भविए उस्मवण्याए तिहिं, उसवणयाए विनिस्सिरण्याएव नो दहण्याए चउहिं, जे भविए उस्सवण्याए वि निस्सिरणयाए वि दहणयाए वि तावं च से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुठे, से ते ० गोयमा १० || ६६ | ५५ -पुरिसे भंते, कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीय मिएस कप्पे मिय पणिहासो मियवहाय गता एए मिएचिकाउ अन्नयरस्स मिस्स वहाय उस निसिरइ, ततो रणं भंते । से -
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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