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________________ २३८ जैनागमो में स्याद्वाद 1 शावगाढो वा द्विप्रदेशावगाढो वा अपरस्तु द्विप्रदेशावगाढ एक प्रदेशावगाढो वा तदा द्विप्रदेशावगाढैकदेशाशावगाढौ यथाक्रम त्रिप्रदेशावगाढद्विप्रदेशावगाढापेक्षया एक प्रदेशहीनौ त्रिप्रदेशावाद्विदेश वाढौ तु तदपेक्षया एक प्रदेशाभ्यधि कौ, यदात्वेकस्त्रिप्रदेशावगाढोऽपर एक देशावास्तदा एकप्रदेशावगाढस्वि देशावगाढापेक्षया द्विप्रदेशहीन त्रिप्रदेशावगाढस्तु तदपेक्षया द्विप्रदेशाभ्यधिक, एम मे कैकप्रदेशपरिवृद्धया चतु प्रदेशादिपु स्कन्धेवाहनाविक्रुत्यहानिबृद्धिर्वा तावद् वक्तव्या यावद् दश प्रदेश स्कन्ध तस्मिंश्रवरान देश के एव वक्तव्य 'जइ होणे पएसही वा दुपटी वा जाव नवपण्महीणे वा ग्रह अभहिए पहिए वा दुपएसममहिए वा जाव नवपएसमव्भहिए वा ' इति भावना पूर्वोक्तानुसारेण स्वयं कर्तव्या, सरुयातप्रादेशिकस्कन्ध नृत्रे 'श्रोगाहट्ट्या" दृट्टा वडिल' इति सव्ययभागेन सख्येयगुणेन चेति श्रमख्या प्रदेशकस्कन्धे 'श्रोताहरपट्याए चउट्टारणबडि इति श्रमख्यानभागेन संख्यातभागेन संख्यातगुणेना सख्यात प्रदेश कन्वेयवगाहनार्थतया चतु स्थानपतिता, , गुनि, अनन्त प्रदेशावगाहनाया श्रमभवनोऽनन्तागानन्तगुणाभ्यां वृद्धि -
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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