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________________ (१५) पर यह स्याद्वाद प्रेमियों की यह चिरकाल से भावना तथा कामना चली आ रही थी कि जैनागमों में जहा कहीं भी लोकोपयोगी स्यादवाद प्रदर्शन करने वाले पाठ है उन का तथा साथ मे उन पाठों पर की गई प्राचीन आचार्यों की संस्कृत टीकायों का भी ग्रह हो जाय । ताकि प्रत्येक जिज्ञासु अपनी जिज्ञासा को एक ही स्थान पर पूर्ण कर सके । काम कोई साधारण काम नहीं था, इस काम के लिये आगमों के मन्थन करने वाले किसी आगमों के मामिक विद्वान की आवश्यकता थी । मै यह वडे गौरव से लिखने लगा हूँ कि मेरे गुरुदेव, जैनधर्म- दिवाकर, साहित्य- रत्न, जैनागमरत्नाकर श्रीमज्जैनाचार्य परमपूज्य,परमश्रद्वेय, श्री आत्मारामजी महाराज के आगमसम्बन्धी विशिष्ट अध्ययन तथा तद्विषयक सतत चिन्तन ने उस आवश्यकता को पूरा कर डाला है । पूज्य श्री जी म० ने अपने आगम स्वाध्याय के बल से जहा कहीं भी स्याद् वाद सम्बन्धी आगमों में पाठ थे उन को एक स्थान पर सकलित कर दिया और साथ मे उन पाठों पर की गई प्राचीन आचार्यों की संस्कृत व्याख्याभी संगृहीतकर दी है । वही सकलन आज " जैनागमों मे स्याद्-वाद" के रूप से पाठकों के कर कमलों मे शोभा पा रहा है । " इस ग्रन्थरत्न मे प्राय आवश्यक सभी स्याद् वाद सम्बन्धी आगम पाठों का सग्रह हे जो कि स्याद्वाद प्रेमी पाठकों की कामना को पूर्णकरने मे कल्प वृक्ष के समान पर्याप्त है । ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है I
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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