SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ जैनागमों मे स्याद्वाद निग्गंथा छउमत्था जे णं एयं वागरणं वागरित्.ए, जहाणं अहं, नो चेव ण एयप्पगारं भासं भासितए जहा णं तुमं; सासए लोए जमाली ! जन्न कयावि णासि ण कयावि ण भवति ण कदावि ण भविस्सइ भुवि च भवइ य भविस्सइ य धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवटिठए णिच्चे, असासए लोए जमाली ! जत्रो अोसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ उस्सप्पिणी भविचा ओसप्पिणी भवइ, सासए जीवे जमाली ! ज न कयाइ णासि जाव णिच्चे असासए जीवे जमाली जन्न नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवइ मणुस्से भवित्ता देवे भवइ ।। -श्री भगवती सूत्र ६।३३।३८७ ।। टीका- न कयाइ नासी'त्यादि तत्र न कदाचिन्नासीदनादित्वात न कदाचिन्न भविध्यति अपर्यवसितत्वात् , किं तर्हि १, 'भविं चेत्यादि ततश्चाय त्रिकालभावित्वेनाचलत्वादेव शाश्वत प्रतिक्षणमप्यसत्त्वम्याभावात शाश्वतत्वादेव 'अक्षयः' निर्विनाश , अक्षयत्वादेवाव्यय प्रदेशापेक्षया, नित्यम्तदुभयापेक्षया, एकार्था वैते शब्दा ॥ मृलम्-मुत्राचं मते ! साहू, जागरियत्त साहू ? जयंती !
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy