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________________ सूक्ति-सुधा ] [38 देने वाली हो सकेगी । अतएव ज्ञान होना सर्व प्रथम आवश्यक है । आदि मे ज्ञान और तत्पश्चात् दया को स्थान दिया गया है । ( ३ ) दुविधा वोही, गाण बोही चेव दंसण वोही चेव । ठाणा०, २ रा, ठा०, ३, ४, ११ टीका - समझ दो प्रकार की है- १ ज्ञान समझ और २ दर्शन समझ । वस्तुओ को जानना - पहिचानना ज्ञान समझ है और उन पर उसी रीति से विश्वास करना दर्शन समझ है । ( ४ ) नाणे जाई भावे । उ०, २८, ३५ टीका -- सम्यक् ज्ञान होने पर ही, सभी द्रव्यो का और उनकी पर्यायो का, उनके गुणो का और उनके धर्मो का भली भांति ज्ञान हो सकता है । } ( ५ ) नाणेण वितान हुन्ति चरणगुणा । उ०, २८, ३० टीका - जिस आत्मा में सम्यक् ज्ञान नही है, उस आत्मा का चारित्र भी ऐसी अवस्था में सम्यक् चारित्र नही कहा जा सकता है । ( ६ ) दुविहे नाणे पच्चक्खे चेव परोक्खे चैव । ठाणा०, २रा, ठा, १ला, उ०, २४, 2 1 टीका--प्रमुख रूप से ज्ञान दो प्रकार का होता है - प्रत्यक्ष और A ๆ
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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