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________________ सूक्ति-सुधा ] [ १९ टीका - भारी कर्मों मे लिप्त जीवों को, भोगों में फंसे हुए जीवो को, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और नीति मार्ग की प्राप्ति बहुत ही कठिनाई से होती 1 ( १६ ) सुदुल्लाहं लहिउं बोहि लाभं विहरेज्ज । उ०, १७, १ टीका - सुदुर्लभ सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन की प्राप्ति · करके, आत्म-कल्याण के मार्ग पर आरूढ होकर आनन्द पूर्वक निर्लेपता के साथ और निश्चितता के साथ विचरो | इसी रीति से जीवन-काल व्यतीत करो । ( १७ ) माणुस्सं खु सुदुल्लाहूँ । उ०, २०, ११ टीका - मनुष्य जीवन मिलना अत्यन्त दुर्लभ है । अनेक जन्मों में महान् पुण्य कर्मो का संचय होने पर ही मनुष्य जन्म की प्राप्ति होती है । इसलिए वहुमूल्य समय को व्यर्थ, और अनुपयोगी कामों में खर्च मत करो । C ( १८ ) मायाहिं पियाहिं लुइ नो सुलहा सुगई य पेच्चओ । 1 सू०, २, ३, उ, १ टीका--जो पुरुष अपना कर्त्तव्य भूलकर माता - पिता के मोह में फस जाता है - मोह-ग्रस्त हो जाता है, उसकी मरने पर सुगति नही हो सकती है ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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