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________________ ४३६ ] [ व्याख्या कोष जन के आगे विनयपूर्वक निवेदन करके उसके लिए क्षमा मागना और व्रत नियम आदि को पुन पवित्र करने के लिए वे जो कुछ भी दड दे, उसका सहर्ष पालन करना और आगे भविष्य मे वैिसा दोष पुन नही करने की भावना करना ही प्रायश्चित है । ९ – पदार्थ - शब्दो द्वारा कही जा सकने वाली विस्तु, जसका शब्दो द्वारा बयान किया जा सके । " तत्त्व" शब्द का पर्यायवाची शब्द | १०- परमाणु रूपवाला, रस वाला, गध वाला, स्पर्श वाला और पुद्गल का एक अश यह पुद्गल का इतना सूक्ष्म से सूक्ष्म अश है, कि जिसके यदि किसी भी प्रकार से टुकड़े करना चाहे, ता त्रिकाल में भी जिसके दो टकडे नही हो सके - ऐसा अति सूक्ष्म तम, स्वतंत्र पुद्गल का अश परमाणु है । एक से अधिक परमाणुओ का समूह "देश" पुद्गल कहलाता है । एटम बम, और हाइड्रो एलेक्ट्रिक वम “देश” पुद्गलो के बने हुए होते हैं । देशपुद्गलो से “परमाणु” पुद्गल को अलग करके केवल "परमाणु" पुद्गल से काम लेने की शक्ति वर्तमान विज्ञान को नही प्राप्त हुई है । ! सभी “देश-पुद्गलो” का सम्मिलित नाम "स्कध " पुद्गल समूह हैं । यह समस्त लोकाकाश में फैला हुआ है । ११ -- पर्यांय प्रत्येक द्रव्य में प्रत्येक क्षण मे उत्पन्न होने वाली नई नई अवस्था अथवा नया नया रूप ही "पर्याय" कहलाता है । छ ही द्रव्यो मे प्रत्येक क्षण-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से कुछ न कुछ फर्क पडता ही रहता है, कोई भी क्षण ऐसा नही होता कि जिस में कुछ न कुछ फर्क नही पडे, इस प्रकार हर दूव्य मे उत्पन्न होने वाली हर अवस्था ही "पर्याय" है । सिद्धो मे मो ज्ञान की पर्यायों में परिवर्तन होता ही रहता है । इसी लिये जगत् को " संसार याने परिवर्तन होते रहने वाला" यह सज्ञा दी गई है ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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