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________________ शब्दानुलक्षी अनुकाद] [४०५ ९११-सयमी सुसमाधि वाले होते है। .. ९१२–असाधुकर्मी ( दुष्ट काम करने वाला) महान् ताप भोगता है। ९१३-जो सर्वोच्च सतोष से अनुरक्त है, वही पूजनीय है । ९१४–सतोषी महापुरुष पाप नहीं करते है। ९१५ - सवोधि याने सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दृष्टि निश्चय ही दुर्लभ है। ९१६-स्त्रियो के प्रति समिश्र भाव को ( चल विचल भावो को) छोड दो। ९१७-सवेग भावना से- ( वैराग्य भावना से ) श्रेष्ठ धर्म रूप श्रद्धा उत्पन्न होती है। ९१८-शुभ कामो से साता रूप सुख-शाति प्रवाहित होती है । ९१९-ससार ( एक प्रकार का ) समुद्र कहा गया है। ९२०- ( कर्त्तव्य शील पुरुष ) मारा जाता हुआ भी क्रोध नही करे, तथा गाली आदि का उच्चारण किया जाता हुआ भी द्वेष नही लावे। ९२१ -हसता हुमा नहा चले। ९२२--शठ पुरुष जन्म, जरा और मृत्यु से पीड़ित हाते हुए, एव भय से व्याकुल होते हुए संसार समुद्र में चक्कर लगाया करते है। ९२३-लज्जा वाला और एकान्त वासी जितेन्द्रिय पुरुष "सु विनीत" होता है। ९२४-हिंसा पैदा करने वाला झूठ मत बोलो। ९२५ - ( आत्म हितैषी ) हिंसा को पैदा करने वाला कथा करे नहीं।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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