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________________ २१ हो रहा है ? अथवा क्षयोपशम हो रहा है ? इन वृत्तियो का परम्पर में उदीरणा और सक्रमण भी हो रहा है अथवा नही ? सत्ता रूप से इन वृत्तियो का खजाना कितना और कैसा है ? कौन आत्मा सात्विक है ? और कौन - तामसिक है ? इसी प्रकार कौनसी आत्मा राजम् प्रकृति की है ? अथवा अमुक आत्मा में इन तीनो प्रकृतियों की समिश्रित स्थिति कैसी क्या है - कौनसी आत्मा देवत्व और मानवता के उच्च गुणो के न दीक है ? ओर - कौन आत्मा इन से दूर है ? ? इस अति गंभार आध्यात्मिक समस्या के अध्ययन के लिये जैन-दशन ने 'गुणस्थान' बनाम आध्यात्मिक क्रमिक विकास गील श्रेणियाँ भी निर्धारित -की है, जिनकी कुल मल्या चौदह है । यह अध्ययन योग्य, चितन-योन्य आर मनन योग्य सुन्दर एव सात्विक एक विशिष्ट विचार धारा है जो कि मनोवैज्ञानिक पद्धति के आधार पर मानस वृनियो का उपादेय और हितावह चित्रण है । इस विचार धारा का वैदिक दर्शन में भूमिकाओ के नाम से और बोद्ध-दर्शन में अवस्थाओं के नाम मे उल्लेख और वर्णन पाया जाता है, किन्तु जैनधर्म में इसका जैसा सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन सुसयत और मुव्यवस्थित पद्धति से पाया जाता है, उसका अपना एक विशेष स्थान है, जो कि विद्वानो के लिये - और विश्व - साहित्य के लिये अध्ययन और अनुसंधान का विषय है । भौतिक विज्ञान और जैन खगोल आदि जैन साहित्य में खगोल विषय के संबध में भी इस ढग का वर्णन पाया जाता है कि जो आज के वैज्ञानिक खगोल ज्ञान के साथ वर्णन का भेद, भाषा का भेद, और, रूपक का भंद होने पर भी अर्थान्तर मे तथा प्रकारान्तर से - बहुत कुछ सदृश ही प्रतीत होता है । आज के विज्ञान ने सिद्ध करके वतलाया है कि प्रकाश की चाल प्रत्येक - सेकिंड में एक लाख छोयामी हजार ( १८६०००) माईल का है, इस हिसाब - से (३६५ दिन x २४ घटा ४६० मिनट x ६० सेकिंड x१८६००० माईल ) इतनी महती और विस्तृत दूरी को माप के लिहाज से 'एक नालोक वर्ष ' ८
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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