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________________ शब्द अनुवाद ] व 1 ७५२ - आचरण अनुसार ही वैश्य होता है और आचरण अनुसार हो शूद्र होता है । ७५३ - ब्रह्मचारी स्त्री को काटो वाली विप लता जान कर छोड़ दे । ↓ " [ ३८५ T ७५४ -- पुद्गलो का लक्षण. "वणं, रस, गव और स्पर्श वाला" होना ' कहा गया है । ७५५ वुढापा मनुष्य के वर्ण को हरण कर लेता है ७५६ --- काल वर्त्तना लक्षण वाला है । ७५७ - वन्दना से नोच- गोत्र कर्म नष्ट होता है और उच्च गोत्र कर्म कर बघ पड़ता है । ७५८- अपनी आत्मा का हित चाहने वाला चारो दोषो को ( क्रोध मान, माया, लोभ को ) छोड दे । ७५९ - नित्य गुरुकुल में ( ज्ञानियों की संगति में ) रहे । ७६०-वाचना से ( पठन पाठन से ) निर्जरा उत्पन्न होती हैं । ७६१ - दुष्ट रीति से वोले जाने वाले वचन वडी कठिनाई से भूले जाने वाले होते है, वैर का बंधन लाने वाले होते है, तथा महान् भय पैदा करने वाले होते हैं । 1 ७६२–विकारों के साथ किया जाने वाला सग्राम ससार से मुक्ति दिलाने वाला होता है । ७६३ - ज्ञान और चारित्र ही मोक्ष है । ७६४-भोगो से निवृत्त हो जाओ, क्योकि अपनी आयु परिमित है । ७६५~जो भोगो से निवृत्त होते हैं, वे ही पुरुषोत्तम है । ७६६ - ज्ञानी तृष्णा को हटाकर के विचरे । २५
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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