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________________ शब्दानुलक्षो अनुवाद ] [३३५ ..३६०-यदि कोई वदना नही करे तो क्रोधित नहीं हो जाय, इसी प्रकार .... वंदना किया जाने पर हर्षित भी न हो।. . . . . । ६६१-जौ मान करने वाला है, वह माया करने वाला भी है। ३६२--जो वध और मोक्ष के कारणो का अनुसधान करने वाला है, । वह कुशल है, उसके पुन वध नहीं होने वाला है और वह , अमुक्त होता हुआ भी शीघ्र मुक्त हो जाने वाला है। ३६३---जो स्त्रियो द्वारा सेवित नहीं है, याने पूर्ण ब्रह्मचारी हैं, वे सिद्ध पुरुषो के समान ही कहे गये है। . . ३६४-जो-(शृंगार भावना से) वस्त्र को घोता है, अथवा छोटा बड़ा - करता है, वह निग्रंथ अवस्था से दूर कहा गया है। ३६५-जो दूसरे मनुष्य का अपमान करता है, वह ससार में नगर वार - - - ---परिभ्रमण करता है। . . . . . ३६६–जो राग और द्वेष से शान्त हो गया है, इनसे दूर हो गया है। 7 वह पूज्य है। ३६७—जो विग्रह-(लडाई झगडा) करता रहता है; और अन्याय व्यक्त बोलता है, वह न तो शाति प्राप्त कर सकता है, और न कोम 'माया से रहित ही हो सकता है। ३६८ -- जिस (सत् आचरण को) करके. अनेक निवृत्त हुए है, उसी आधार से पडित सिद्धि को प्राप्त करते हैं। ... : ३६९-जो गोपनीय हो, उसे नहीं बोलना चाहिये। ३७०-जिसने जैसे पूर्व में कर्म किये हैं, वैसा ही ससार में उसको फल प्राप्त होता है। ..... ३७१-जो वाद्य विशुद्धि की ही खोज करते हैं, उसको पडित "सुइष्ट' . याने वाछनीय नही कहते है। ३७२-जो सिद्धान्त सभी साधुओ द्वारा मान्य है, वही, सिद्धान्त, क को (माया, नियाणा, मिथ्यात्व को) छेदने वाला है। ३७३ --जिसको वोल कर पछताना पड़े । (वह मत बोलो)
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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