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________________ शब्दानुलक्षी अनुवाद ] ३११] । २४९-काम-भोग निश्चय ही अनर्थो की खान है । . -- . ___ २५०- (मोक्ष) क्षेम स्वरूप है, शिव स्वरूप है और अनुत्तर पदे ' श्रेष्ठ है। २५१-(प्रभु महावीर ) खेदज्ञ याने ससार के दुख सुखको जानने वाले थे, कुशल और शीघ्र बुद्धि वाले थे, अनत ज्ञानी और सदन्त दर्शी थे। २५२-क्षमा शूर अरिहंत है, तप शूर अनंगार है, दान शूर कुवेर है - और युद्ध शूर-वासुदेव है। २५३-पडित याने सज्जन पुरुप क्षमा का आचरण करे । २५४-(आत्महितपी)-क्षमा वाला हो, कषाय से रहित हो, जितेन्द्रिय हो, अनासक्त हो, आर सदा यत्ना शील हो। . . . . .. ग .. - २५५-धर्मास्तिकाय का लक्षण जीव-पुद्गलो के लिये गति में सहायक होना है। । २५६-कर्मों का विपाक (फल) प्रगाढ याने अत्यत कडुआ होता है । १ २५७-गृद्ध मनुष्य काम-भोगो में मूच्छित होते है । . 1 २५८-सदा दुष्ट वाणी से दूर ही रहो, इससे (ऐसा आत्मा ) सज्ज के मध्य में प्रशंसा को प्राप्त करता है। . . २५९-~-गृद्ध पुरुप न तो ज्ञान रूप दीपक को हा देख सकते हैं और न चारित्र रूप द्वीप को ही प्राप्त कर सकते है । २६०-गुणो द्वारा ही साधु कहा जाता है, और दुर्गुणो से ही असावु कहा जाता है। २६१–जितेन्द्रिय और गुप्त ब्रह्मचारी सदा अप्रमादी होकर ही विचरे । . २६२-आत्म भावना वाला सदा गुप्तिशील, जितेन्द्रिय और यत्ला बाला ... - होवे । । २६३-यह ससार महान् प्रवाह रूप समुद्र के समान कहा गया है, यार इसकों गुरु की आज्ञानुसार चलने वालो ने तथा पापो से दूर रहने वालो ने ही पार किया है। । .. इसकों या
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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