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________________ सूक्ति-सुधा ] ' [ २७९ अवर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, और काल द्रव्य समझना चाहिये । ( २९ ) तो सुसन्नप्पा, अट्ठे श्रमूढे, अबुग्गाहिए । ठाणा० ३रा, ठा, उ, ४, १४ टीका - तीन प्रकार के मनुष्यो को समझाना सुलभ है ६ १ अदुष्ट यानी द्वेष रहित को सरल प्रकृति वाले को, २ अमूढ़ को यानी बुद्धि शाली को और ३ कुसंगति मे नही पड़े हुए को अर्थात् मिथ्यात्वियो से भ्रमित नही हुए को । ( ३० ) तओ दुसण्णप्पा, दुट्ठे, मूढे, कुग्गाहिए । ठाणा०, ३रा, ठा, उ, ४, १४ टीका -- तीन प्रकार के पुरुषो को समझाना बहुत ही कठित होता है - १ दुष्ट यानी सात्विक वातो के कट्टर विरोधी को खल पुरुष को, २ मूढ यानी सर्वथा अज्ञानी को, और ३ मिध्या धर्म मोह में पूरी तरह से ग्रसित पुरुष को, यानी कुगुरुओ द्वारा अथवा कुसंगति से भ्रमित पुरुष को । ( ३१ ) तओ सुग्गया, सिद्ध सुग्गया, देव सुग्गया, मरणस्स सुग्गया । ܕ ठाणा०, ३रा, ठा, ३ उ, १५ टीका - सुगति तीन प्रकार की कही गई है :- १ सिद्ध सुरति २ देव सुगति, और ३ मनुष्य- सुगति ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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