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________________ १७४] [प्रकीर्णक-सूत्र बर्षात् एक यानी आत्मा, पाच यानी मन और चारो कषाय, दस यानी पांचो इन्द्रियाँ, तीनो योग, कषाय और नोकषाय वृत्ति । . (१३) दुक्खं च जाई मरणं। ___उ०, ३२, ७ टीका--जन्म-मृत्यु ही दुख है, यानी जन्मने और मरने के बराबर घोर दुःख दूसरा और कोई नहीं है। जन्म-मृत्यु दुखो की प्रथम श्रेणी में है। (१४) पुरिमा उज्जु. जड़ा उ, वक्क जडा य पच्छिमा । उ० २३, ३६ टीका--पहले तीर्थकर के समय मे जनता सरल और अति सामान्य बुद्धि वाली थी, किन्तु चौवीसवे तीर्थकर के शासन-काल में जनता कपटी, और मुर्ख होती है। मूर्खता को ही चतुरता समझने बाली होती है। (१५) मज्झिमा उज्जु पन्ना उ । __उ., २३, २६ टीका-द्वितीय तीर्थंकर से लगा कर २३ वे तीर्थकर तक के शासन-काल मे जनता सरल हृदय वाली और बुद्धि-शालिनी थी। (१६) वहु मायाओ इत्यिो । सू०, ४, २४, उ, १ टीका-स्त्रियाँ बहुत माया वाली होती है, और इसलिये स्त्रियों के चंसर्ग से उनकी सगति करने वालो मे भी माया-जाल की उत्पत्ति
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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