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________________ २९२] ' [अनिष्ट-प्रवृत्ति-सूत्र टीका-चार प्रकार के कामो से जीव तिर्यच-गति का बंध करते है -१, माया के कामो से, २ वचना करने से ठगाई से, ३ असत्य बोलने से और ४ खोटा तोल तथा खोटा माप करने से। ( ३७ ) चउहि ठाणेहिं जीवा णेरइयत्ताप कम्मं : पगरेति, महारभयाए, महापरिग्गहय ए, पदिय वहेगा, कुणिमहारेणं । - ठाणां०, ४ था, ठा, उ, ४, ३९ टीका-चार प्रकार के कामो से जीव नरक-गति का बंध करते है.--१ महा आरभ के कामो से, २ महा परिग्रह से, ३ पचेन्द्रिय जीवो की घात करने से और ४ मास का आहार करने से। (३८) पाणा पाणे किलेसति ।। आ०,६,१७४, उ, १ टीका-प्राणी ही प्राणियो को दु ख देते है। राग-द्वेष-वशात् और कषाय-विकार-वशात् परस्पर में कलह करते है। एक दूसरे को हानि पहुंचाते है । एक दूसरे की हत्या करते है। परस्पर में ताड़ना, फटकारना--मारना-आदि क्लेश वर्धक कार्य करते है। तिविहा उवही, मच्चित्ते, अच्चित्त, मीसए । ठाणा, ३, रा, ठा १, ला, ३, २७. ___टीका-वस्तुओं का संग्रह करना उपाधि है और वस्तुओ पर ममता-भाव रखना परिग्रह है । उपाधि तीन प्रकार की कही गई है -१ सचित्त उपाधि, २ अचित्त -उपाधि, और ३ मिश्र उपाधि ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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