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________________ सूक्ति-सुधा] [२११ (२८) दोस वत्तिया मुच्छा दुविहा, कोहे चेव, माणे चेव । ठाणा, २रा, ठा, उ, ४, १३ टीका--द्वेष-मूर्छा, अथवा द्वेष-जनित घृणा, दो कारणो से हुआ करती है :-१ क्रोध से और २ मान से । (२९) सुहमे सल्ले दुरुद्धरे, विउमंता पयहिज्ज संथवं । __सू०, २, ११, उ, २ टीका-सूक्ष्म शल्य का नाश करना यानी अभिमान का त्याग करना बड़ा ही दुष्कर काम है । जड़ मूल से इसको उखाड़ फेकना अत्यन्त कठिन है, इसलिये आत्मार्थी पुरुष वदना-पूजना आदि रूप परिचय से दूर रहे। मुमुक्षु आत्मा वदना-पूजना, यश-कीति की बाछा न करे। सेवा और त्याग को ही सर्वस्व समझे। ( ३० ) विहे बंधे पेज्ज बंधे चेव, दोस बंधे चेव । - ठाणा, २ रा, ठा, उ, ४, ४ . टीका-आत्मा के साथ कर्मों का बधन दो कारणो से हआ करता है-१ राग भाव से और २ द्वेष भाव से । माया और लोभ के कारण से राग भाव पैदा होता है, तथा क्रोध और मान से द्वेष भाव पैदा हुआ करता है। " (३१) एत्थ मोहे पुणो पुणो। या०, ५, १४३, उ, १
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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