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________________ १६०7 [श्रमण-भिक्षु-सूत्र ( ५२ ) अणगार चरित्त धम्म दविहे, ' सराग सजमे चेव, वीयराग सजमे चेव । । ठाणा, २, रा, ठा, उ, १, २५ टोका--अणगार चारित्र अथवा साधु धर्म भी दो प्रकार का है --१ सराग सयम और २-वीतराग सयम । - सराग सयम मे गरीर, धार्मिक-उपकरण, यश कीति, सन्मान आदि के प्रति ममत्व-भाव रहता है, जब कि वीतराग मयम में ममता, आसक्ति आदि का सर्वया लोप हो जाता है। ..., मुणी मोर्ण समायाय, धणे कम्म सरीरगं ।' - - - . . . आ०, २, १००, उ, ६ . टीका--आत्मार्थी मुनि-मौन को ग्रहण कर, अपनी वृत्तियो को नियत्रित कर, सात्विक-मार्ग पर उन्हे सयोजित कर, अपने पूर्व सचित कर्मो का और, मानसिक अशुभ सस्कारो - का, तथा अनिष्ट वासनामो का क्षय करता रहता है । अथवा इन्हे क्षय करे । चत्तारि आयरिया, आमलंग महुरफल समाणे, मुदियामहुर फल समाणे खीर महुर फल समाणे, खंड महुरफल समाणे। ठाणा०, ४ था, ठा०, उ, ३, १३ । टीका-आचार्य चार प्रकार के होते है--१-आवले के रस के समान शब्द-प्रयोग में उपालभ आदि रूप खटास-मिटास-पद्धति का प्रयोग
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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