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________________ सूक्ति-सुधा Ĉ ( ४२ ) मिय काले भक्खए । उ०, १, ३२ टीका——भोजन करने का समय होने पर, परिमित, पथ्य, अवि कारी और आवश्यक भोजन करो । 7 ( ४३ ) रक्खजं कोई विएज माणं । उ०, ४, १२ - टीका — क्रोध से दूर रहो और मान को हटाओ । क्रोध विवेक को नष्ट करता है और मान आत्मा के गुणो का नाश करता है । ~2 (४४) मायं न सेवेज पहेज्ज लोहं । उ०, ४, १२ टीका -- माया की, कपट की सेवना न करो और लोभ को छोड़ो | माया दुर्गुणों की खान है और लोभ पाप का बाप है । (४५) खणं जाणाहि पंडिए । [ १३१ c आ०, २, ७१, उ, १ टीका है पडित ! हे आत्मज्ञ । क्षण-क्षण का विचार करो 1 ' " द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव से प्रत्येक पंदार्थ को समझो, उस पर मननचिंतन करो । उस तत्व का अनुसधान करो, जिसके बल पर यह ससार चक्र चल रहा है । 1 ( ४६ ) प्रास च छंद चं विधिं च धीरे । आ०२, ८५, उ, ४ 1 टीका - हे धीर । हे बुद्धिमान् । भोगो की आकांक्षा को और भोगोकी प्रवृत्ति को छोड़ दी । भोगो से आज दिन तक न तो किसी को
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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