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________________ [ सात्विक-प्रवृत्ति-सूत्र ईश्वर, पाप, पुण्य आदि आधार-भूत तत्वों पर पूरी पूरी श्रद्धा रखता है, वह पुरुष सात्विक विचारो वाला है। वह अमायावी है और वही मोक्ष-मार्ग का पथिक है । ण यावि पन्ने परिहास कुज्जा। . सू०, १४, १९ टीका----बुद्धिमान् पुरुप; किसी की भी हसी नहीं करे, क्योकि हसी लडाई का घर है। लडाई अनर्थो का मूल है। अतएव हंसी से दूर रहना ही वुद्धिमानी है। " , ' . ( १०) . भवे अकामे अझंझे। मा, ५, १५४, उ, ३ टीका-जीवन में यही आदर्श हो कि काम-भाव, इच्छा-भाव, तृष्णा-भाव नष्ट हो जाय । कपाय-भाव, और राग-द्वेष भाव के नष्ट होने पर ही स्व का और पर का कल्याण हो सकता है। 17 एमिज्जई महावीरे सू१, १५, ८ - टीका--जो पुरुष आत्महित की वृत्तियों में ही लगा रहता है, आत्म-कल्याण की भावना मे ही रमण करता रहता है, वह जन्म-मरण नही करता है, यानी ऐसा पुरुष महावीर है, और वह शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ___ , (१२) : 1 अकुचयो ण णत्थि। . : टीका--जो पुरुप अनासक्त भावसे, वीतराग-भावसे कार्य करता है, वह अकर्ता के समान है । उसको नये कर्मों का वधन नही होता
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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