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________________ सूक्ति-सुधा . ___टीका-"तूं, तू" ऐसे तुच्छ और अनादर वाचक शब्द भी नहीं बोलना चाहिये । इसी प्रकार अप्रिय या अशोभनीय शब्दोंका उच्चारण भी नहीं करे। बोली मे गम्भीरता, उच्चती, सार्थकता एवं सम्मान सूचकता होनी चाहिये। (१७) वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि वेराणु बंधीणि महन्भयारण। . द०, ९, ७, तृ, उ, टीका-विना सोचे विचारे कहे हुए दुष्ट और अनिष्ट वचन बड़ी कठिनता से हृदय से भूले जाते है । वे वैर-भाव को बढ़ाने वाले होते हैं और महाभय पैदा करने वाले होते है । (१८) - अविअत्तं चेव नो वए । __ द०, ७,४३ टीका-जिन वचनो से वैर-विरोध बढता हो, जो अप्रिय हो, ऐसे वचन कदापि नही वोलना चाहिये । क्योकि ये अवक्तव्य होते हुए स्व-पर हानिकारक होते है । - (१९) भूओ व घाइणि भासं, नेवं भासिज पन्नवं। द०, ७, २९ टीका-बुद्धिमान् पुरुष प्राणियो के मर्म पर चोट करने वाली या मृत्यु पैदा करने वाली वाणी कदापि नही बोले । वाणी में विवेक और सयम की नितान्त आवश्यकती है।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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