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________________ सूक्ति-सुधा ] [ ६३ चाओ। सभी प्राणियो को अपनी ही आत्मा के समान समझो । यही भारतीय-दर्शन-शास्त्र के आचार - विभाग का निष्कर्ष है । ( १६ ) अणुपुव्वं पाणेहिं संजए । सू०, २, १३, उ, ३ टीका —— शाति की इच्छा करने वाला मनुष्य क्रमश प्राणी मात्र की रक्षा करे । प्राणी मात्रके हित की कामना करे। किसी के भी सुख का अपहरण नही करे । : ( १७ ) सन्वेहिं मूर्हि दयाणु कंपी, खंतिक्ख में संजय बंभयारी । उ०, २१, १३ टीका -- प्राणी मात्र पर दया वाले बनो, अनुकंपा वाले बनो । क्षमा-शील, संयमी और ब्रह्मचारी बनो । ( १८ ) अभय दाया भवाहि । उ०, १८, ११ टीका - अभयदान के देने वाले होओ । शरणार्थी की रक्षा करने वाले वनो । भय-ग्रस्त और मृत्यु-ग्रस्त जीवो को बचाओ । न्दया, अनुकम्पा, करुणा, और सहानुभूति इन गुणों को जीवन में स्थान दो । ( १९ ) धम्मेठियो सव्व पयाणु क्रस्पी । उ, १३, ३२ टीका—धर्म मे, अपनी मर्यादा में, सात्विक प्रवृत्तियों में, रहते हुए सभी प्रजा की या सभी जीवों की अनुकम्पा करने वाले वनों ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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