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________________ [४९ सूक्ति सुवा] से ही कर्म रूपी मल दूर हो सकता है । बाह्य शुद्धि व्यावहारिक है, वास्तविक नही है। धम्मस्स विणो मूल द, ९, २, द्वि, उ, टीका-विनय ही धर्म का मूल है। विनय के अभाव में ज्ञान को, दर्शन को और चारित्र की कीमत बहुत थोडी रह जाती है । इह माणुस्सए ठाणे, - धम्म माराहिउं णरा। सू०, १५, १५, - टीका-इस मनुष्य-लोक मे धर्मका आराधन करके बनेक आत्माएँ ससार-सागर से पार हो जाती है । ससार-समुद्र में धर्म ही एक उज्ज्व ल जहाज है। घणण किं धम्म धुराहि गारे। उ०, १४, १७ ।। टीका--धर्मरूपी धुरा के उठा लेने पर यानी धर्मको अंगीकार कर लेने पर-सेवा, ब्रह्मचर्य, दान आदि को स्वीकार कर लेने पर घर का मूल्य ही क्या रह जाता है ? धन तो धर्म के आगे धूल के समान है। (८) धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइओ। उ०, १४, २५
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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