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________________ ( ७८ ) . . यह इस चौभंगी का अर्थ है। इसमें न तो कुपात्रदान का - जिक्र है, न कुपात्र, न कुक्षेत्र तथा पुण्य का जिक्र है। फिर भी तेरह-पन्थी लोग इस पाठ के अर्थ में इन सबको जबर्दस्ती यह सिद्ध करने के लिए घुसेड़ते हैं कि तेरह-पन्थी साधुओं के सिवाय और सब कुपात्र हैं, इसलिए उनको दान देना पाप है। इसी तरह सैकड़ों जगह लोगों को धोखे में डालने और अपने मत का प्रचार करने के लिए तेरह-पन्थी साधुओं ने कई जगह शास्त्र के अर्थ का अनर्थ अथवा इच्छानुसार अर्थ किया है। जो लोग चाहें, वे 'भ्रम-विध्वंसन' प्रन्थ देख सकते हैं, जिसका प्राप्तिस्थान भैरोंदान ईश्वरचन्द चोपड़ा, गंगाशहर (घीकानेर ) लिखा है। हमारा अनुमान है कि 'भ्रम-विध्वंसन' के झूठ कपट की बातें अब खुल गई हैं, इसलिए पत्र लिखने पर भी 'भ्रम-विध्वंसन' पुस्तक शायद ही प्राप्त हो । प्रयत्न कर देखिये, और यदि प्राप्त न हो, तो फिर हमारे पास आकर देखिये । ___ कहना यह है कि इस तरह झूठ कपट का आश्रय लेनेवालों का सत्य-व्रत क्या सरक्षित रह सकता है ? झूठ कपट ही नहीं, किन्तु जिसे झूठ में झूठ, कपट में कपट और माया में माया कहा जाता है, तेरह-पन्थी साधु वैसा ही करते हैं। शास्त्र के विपरीत अर्थ की बात श्रावकों को ज्ञात न हो जावे, इसके लिए तरह-पन्थी - साधुओं ने श्रावकों के लिए सूत्र पठन काही निषेध कर दिया है।
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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