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________________ ( ७ ) क्यों नहीं देते १ यदि आप भोजन न करें; शीत, ताप, वर्षा से बचने का प्रयत्न न करें, पैर का काँटा न निकालें, रोग होने पर, वैद्य डाक्टर कोः शरण न लें तो क्या आपको पाप होगा? सनत्कुमार (चक्रवर्ती) मुनि ने शरीर के रोग नहीं मिटाये तो क्या उनको पाप हुआ ? गजसुकुमार मुनि ने शरीर को रक्षा का प्रयत्न नहीं किया तो क्या उन्हें. पाप लगा? जिन कल्पी. साधु शीत, वर्षा, ताप सहते हैं, तो क्या पाप करते हैं ? अनेक साधुओं ने साधु होते ही आहार पानी त्याग दिया, तो क्या उनको पाप हुआ? यदि नहीं, तो फिर आप शरीर-रक्षा का यह युक्ति उनकी मूर्खतापूर्ण है। कारण कि अर्श (मस्सा ) छेदने से साधु. के धर्मान्तराय नहीं पढ़ती, परन्तु मस्सा के कारण से साधु को 'जो पीड़ा होती थी, जिससे उनके शुभ ध्यान में विघ्न पड़ता था, किसी 'समय पर रोग और पीड़ा के कारण आध्यान भी होता था; वह मिटाया और भविष्य में समाधि रहेगा, उस समाधि करने के निमितभूत वैद्य, डॉक्टर ही हैं, वास्ते उसको महा पुण्य और अशुभ कर्म की निर्जरा होती है। जैसे जीवानन्द वैद्य ने मुनि के शरीर में क्रमियादि रोग की शान्ति करके तीर्थकर नाम के योग्य पुण्य एकत्रित किए थे। ... तेरह-पन्थी कहते हैं कि जिस वैद्य ने साधु का अर्श (मस्सा) छेदा है, उसने साधु के धर्म में विघ्न डाला है, साधु को धर्मान्तराय दी है, इसलिए उसको पाप की क्रिया लगती है, लेकिन साधु को क्रिया नहीं 'लगती। क्या ही अच्छा न्याय है। अर्श छेदे उसको पापं, और जिनका रोग गया उनको धर्म।
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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