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________________ । ३८ ) पुत्र में से कौन तो अपने सिर पर कर्म-रूपो ऋण चढ़ा रहा है, और. कोन . अपने पूर्व संचित कर्म-रूपी ऋण को चुका रहा है। यह देखो! राजपूत (घरे को मारने वाला) बकरे को मारकर अपने सिर पर कर्म ऋण और बढ़ा रहा है, लेकिन वकरा, राजपूत के हाथ से मर कर अपने पूर्व संचित कर्म भोगने रूप अपने सिर पर का ऋण चुका रहा है। इसलिए साधु रूपी पिता, राजपूत (पकरा मारने वाले ) रूप पुत्र को हो वजेंगे कि अपने सिर पर कम-रूपी कर्ज क्यों करता है १ कर्म-रूपी कर्ज करने से तुझे बहुत चकर खाने पड़ेंगे और परभव में दुःख पाना होगा। इस तरह राजपूत-रूपी पुत्र को मुनिराज ने भली प्रकार समझाया और उसका तिरना चाहा, परन्तु बकरे को जीवित रखने के लिए मुनिराज उपदेश नहीं देते। क्योंकि वह तो मरकर अपने पर का कर्म-ऋण चुका रहा है। उसको कर्मरूपी ऋण चुकाने से मुनिराज-रूपी पिता क्यों रोके १ हे बुद्धिमानों !. इस रहस्य को अच्छी तरह समझो। • यह है तेरह-पन्थियों का सिद्धान्त । थोड़ी समझ वाले लोगों में यह सिद्धान्त भरने और उनसे अपना यह सिद्धान्त स्वीकार कराने के लिए तेरह-पन्थी लोग उन लोगों के सामने चित्र रखते हैं, अथवा कंकर रखकर समझाते हैं, कि देखो, यह बाप है और दो पुत्र हैं। एक पुत्र अपने सिर पर. फर्ज कर रहा है और
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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