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________________ ( २२ ) से पहले संधारा करने की चाह नहीं दी, तो इससेट है, कि उन्होंने असं एकेन्द्रिय जीवों की अदा 'मनुष्य-जीवन को अविक माना है, और तेरी साधु भी ऐसा ही मानते हैं, तभी वो इतनी हिंसा का भी जीवित रहते हैं। अव पाँच दन्डीक सुनिये ! साबुनगह से दूसरी लग जाते हैं, यदि मार्ग में नहीं आती हो, तो उस नदी को पार करते हैं। यदि नहीं में ना हो, तो नाव के द्वारा नदी पार करते हैं और यदि नाव नहीं लगती है, नया पानी घुटने से नीचे है, तो पानी में उतर कर पार जाते हैं। चाहे नव मे बैठकर जावे या पानी में करना, अपकाधिक जीवों की भगवान ने उल के एक एक बिन्दु में हिंसा तो होती ही है | पानी के असंख्य २ जीव हैं । श्रव निगोह है, और निगोद में भी है। त्रों की हिंसा करके साधु, पार जाते हैं, परन्तु जाते हैं कि लिए ? लोगों की व प्रदेश सुनाने के लिए की और उनके द्वारा सुनाये जाने वाले वर्मोपदेश से यदि किसी को फायदा होता है, वो ज्ञान दर्शन चारित्र तया नप स्वीकार करने वाले थोड़े से मनुष्यों को ही । यदि एकेन्द्रिय जीव और पंचेन्द्रिय मान हैं, तो फिर असंख्य बल्कि अन्य जीवों की हिंसा थोड़े से मनुष्यों के हिन के लिए क्यों को लादी है ! वह एक बार दो बार नहीं, किन्तु
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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