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________________ (१७८ ) टुकी होय छे. पण आ हकीकतनो जेने ख्याल न होय तेओ मा साधु साध्वीगोने स्थानकवासी सम्प्रदायनां साधु साध्वीश्रीज माने. तेमनो उपदेश पण ३२ सूत्रो उपर ज रचायेलोछे ऐम तेमनो दावो छ भने आचारमा पण तेओ देखीती रीते स्थानकवासी साधुनां आचार पाले छे. एटले कोई पण भ्रमणामां पड़े एवं छे. तो एक सवाल ऊभो. थाय के तेमनो विरोध शा माटे करवामां आवे छे. भापणा सम्प्रदायनां अप्रगण्य साधु मुनिराजो अने श्रावको 'जेमने तेरा-पन्थनो पुरतो अंगत अनुभव छ तेवाओए चेतवणी भापी छ के, तेरा-पन्थी मान्यताओं स्थानकवासी सम्प्रदायनी मान्यताओथी सदंतर विरोधी छ, एटलुंज नहि पण जैन धर्मनां सिद्धांतोथी विरोधी छे. अने तेरा-पन्थी.साधुओनां बाह्य आचारथी आकर्षाइ पापणा भाईओ तेमनी मान्यताओ तरफ वळशे तो स्थानकवासी सम्प्रदायने अने जैन धर्म ने मोटी हानि थवानो 'सम्भव छ. :एक भाइए ‘मने लत्यु छ के आपणां केटलाक अनुभवी साधुजीओए तेरा-पन्थ विषे तेमने केटलीक वातो कही ते कमकमाटी उपनावे तेवी छे. . .. ... . श्रा उपरथी मारी जिज्ञासा वधी, अने में तेरा-पन्थ संबंधे काइक जाणवा प्रयत्न कयों. आज अरसामां मने केटलाक तेरापन्थी आवकोनो परिचय थयो भने तेमनी साथे लंबाणथी में चर्चा करी, तेमजातैमर्नु कटलुक साहित्य मेलव्यु. थोड़ा दिवस पहेलां कल
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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