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________________ ( १२५ ) नहीं है, किन्तु भय पाते हुए का भय मिटाने का नाम ही अभयदान हैं। 'सूयगडांग' सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के छठे अध्ययन में 'दाणाण सेटुं श्रमयप्पयाणं' पाठ आया है। इसकी व्याख्या करते हुए टीकाकार ने स्पष्ट लिखा है, कि 'जो मांग रहा है, उसको अपने और माँगने वाले के अनुग्रह के लिए उसके द्वारा माँगी गई चीज देने का नाम दान है। ऐसा दान अनेक प्रकार का है, जिनमें अभय-दान सबसे श्रेष्ठ है । क्योंकि अभयदान, उन मरते हुवे प्राणियों के प्राण का दान करता है, कि जो प्राणी मरना नहीं चाहते हैं, किन्तु जीवित रहने की इच्छा रखते हैं। मरते हुए प्राणी को एक ओर करोड़ों का धन दिया जाने लगे और दूसरी ओर जीवन दिया जाने लगे, तो वह धन न लेकर जीवन ही लेता है । प्रत्येक जोव को जीवन सब से अधिक प्रिय है । इसी से अभयदान सब में श्रेष्ठ है ।' व्यवहार में भी अभयदान का अर्थ भयभीत को भय रहित बनाना ही किया जाता है। कोष आदि में भी अभयदान का अर्थ यही है। ऐसी दशा में तेरह पन्थियों का यह कथन सर्वथा असंगत है, कि भयभीत को भयमुक्त करना श्रभयदान नहीं है, किन्तु किसी को भय न देने का नाम अभय-दान है । थोड़ी बुद्धि वाला १७
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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