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________________ ( १२० ) की हिंसा होती है, इसलिए किसी मरते हुए को बचाना, पानी में डूबते हुए या श्राग में जलते हुए को निकालना या किसी प्यासे को पानी पिलाना पाप है। जैसाकि वे भगवान पार्श्वनाथ के विषय में कहते हैं, कि भगवान पार्श्वनाथ ने आग में जलते हुए नाग नागिनी को बचाने में आग पानी के जीवों की हिंसा की थी, इस लिए उनका यह कार्य पाप था । इस प्रकार तेरह - पन्थो लोग, किसी की रक्षा में होने वाली स्थावर जीवों की हिंसा को आगे लेकर जीव-रक्षा को पाप बताते हैं। लेकिन यदि जीव बचाने में होने वाली इस तरह की हिंसा के कारण ही जीव को बचाना पाप हो जावेगा, तो फिर और भी बहुत से काम पाप में ठहरेंगे । इम मान्यता के अनुसार -- जैसा कि हम पहिले बता चुके हैं, साधु का पलेवन करना भी पाप होगा, साधु का रजोहरण रखना भी पाप होगा, साधु का दर्शन करना भी पाप होगा और यहाँ तक की तीर्थङ्कर का दर्शन करना भी पाप ठहरेगा। क्योंकि इन सभी कामों में प्रारम्भ में एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती ही है, बल्कि कभी कभी श्रंस जीवों की भी हिंसा हो जाती है। चलने फिरने में एकेन्द्रिय तथा त्रस जीव की हिंसा होती है, इस बात को मानने से कोई इन्कार नहीं कर सकता । यदि इस तरह की हिंसा के कारण ही मरते हुए जीव को बचाना,
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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