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________________ ( ९२ ) छः काय के जीवों को मारकर जिमाते हैं। यह जीव-हिंसा का मार्ग ही बुरा है, लेकिन अनार्य लोग इसमें भी धर्म बताते हैं।॥ १॥ ___ रुपया खर्च कर अनेक प्रारम्भ करके अधरणी (गर्भवती का आठवें या सातवें मास का उत्सव) भात, बरोठी आदि न्याति वाले को जिमाते हैं। ये सब संसार बढ़ाने के काम हैं (यानी पाप है, ) लेकिन मूर्ख लोग इनमें धर्म बताते हैं। .. इस तरह सम्वन्धी, स्नेही, स्वधर्मी (श्रावक ) और न्याति को जिमाना तो 'रीति' के अनुसार होने पर भी तेरह-पन्थी लोग पाप कहते हैं, फिर तीर्थङ्करों द्वारा दिये गये दान को और श्रेणिक की जीव हत्या न करने की घोषणा को पाप क्यों नहीं कहते ? जब ये सभी काम रीति के अनुसार हैं, तब एक पाप हो, और दूसरा पाप नहीं, इसका क्या अर्थ १ यह तो स्पष्ट ही जनता को धोखे में डालना है। . . साधुओं के सिवा अन्य लोगों को दिया गया दान, तथा मित्र, स्नेही, सम्बन्धी, ज्ञाति आदि को भोजन कराना - एकान्त पाप नहीं है, यह हम अगले प्रकरण में बतायेंगे। यहाँ तो केवल इतना ही बताना इष्ट है कि तेरह-पन्थी लोग, अनुकम्पा दान के दुश्मन बनकर किस तरह लोगों को चकर में डालते हैं, और किस तरह कहीं कुछ तथा कहीं कुछ मानते हैं।
SR No.010339
Book TitleJain Darshan me Shwetambar Terahpanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarprasad Dikshit
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1942
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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