SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० जैनबालबोधकबहुतसा धन उपार्जन करके शेठ आया और घरपर पहंव. कर कडारपिंगलको उस पायखानेमेसे निकलवाकर गोंदके द्वारा रत्नद्वीपसे लाये हुये अनेक पक्षिओंकी पांखें चिपका कर एक विकटाकार पक्षी बनाकर पिंजरेमें बंद करके राजा के यहां ले गया, और अर्ज किया कि हजूर आपने जो किंजल्क नामका पक्षी मंगाया था सो यह हाजिर है । फिर एकांतमें जाकर सब सच्चा २ हाल कह सुनाया तो राजा कडारपिंगलपर बहुत ही गुस्सा हुधा और उसी वक काला मुंह करके गधेपर चढाकर सारे शहरमें फिराकर और उस की बदमासीका फल सुनाकर जानसे मार डालनेका हुकम दिया । खोटे परिणामोंसे मरकर पापी सीधा नरक पहुंचा। अतएव कुशील भादि पाप कर्मोसे विरक्त होकर सबको सदाचारी बनना चाहिये। २५. शुद्ध जल। स्वास्थय रक्षा के लिये जिस प्रकार निर्मल वायुकी आव. श्यकता है उसी प्रकार निर्मल जलकी भी अतिशय भावश्यकता है । यद्यपि आजकल बडे बडे शहरों में जलको परिकृत और निर्मल करके नलके ( जल कलके) द्वारा घर २ पहुंचाया जाता है परंतु उसके द्वारा उच्च कुलकी सनातनी
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy