SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय भाग । ३६ उत्तम क्षमा १, उत्तम मार्दव ( मान न करना ) २, उत्तम आर्जव (कपट न करना ) ३ उत्तम शौच ( लोभ न करना अंतःकरणको शुद्ध रखना ) ४, उत्तम सत्य ५, उत्तम संयम ( छह कायके जीवोंकी रक्षा करना व इन्द्रिय मनको वशमें रखना ) ६, उत्तम तप ७, उत्तम त्याग (दान करना ) ८, उत्तम आकिंचन (२४ परिग्रहका त्याग करना ) ९, और उत्तम ब्रह्मचर्य पालना १० ये दश उत्तम धर्म हैं । छह आवश्यक | समता घरि वंदन करें, नाना थुती वनाय । प्रतिक्रमण स्वाध्याय जुत, कायोत्सर्गे लगाय ॥ २० ॥ सब जीवोंसे समता रखना १, वंदना ( हाथ जोड मस्त कसे लगाकर नमस्कार करना ) २, परमेष्ठोकी स्तुति करना ३, प्रतिक्रमण करना (लंगे हुये दोषों पर पश्चाताप करना ) ४, स्वाध्याय करना ५, कायोत्सर्ग ध्यान करना ६ ये षट् आवश्यक हैं || २० ॥ पांच आचार और तीन गुप्ति । दर्शन ज्ञान चरित्र तप, वीरज पंचाचार । गोपै मन चच कायको, गिन छतीस गुनसार ॥ २१ ॥ दर्शनाचार १, ज्ञानाचार २, चारित्राचार ३, तपाचार ४, और वीर्याचार ये ५ तो आचार हैं और मनोगुप्ति, (मनको वशमें रखना, ) वचनगुप्ति ( वचनको वशमें रखना )
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy