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________________ तृतीय भाग १०. जिनेंद्र जन्म मंगल. मतिसुत अवधि विराजित, जिन जव जनमियो। तिहूं लोक भयो लोमित, सुरगन भरमियो॥ कल्पवासिघर घंट अनाहद, वजियो। . ज्योतिष घर हरि नाद सहस-गल गजियो। गजियो सहजहि संख भावन-भुवन शब्द सुहावने । वितरनिलय पटपटह वजहि, कहत महिमा क्यों बने । कंपित सुरासन अवधिरल, जिनजन्म निहचै जानियो। धनराज तव गजराज मायामयी निर्मय आनियो ॥१॥ जोजन लाख गयंद वदन सौ निरयये । • वदन वदन बसु दंत दंत सर संठये ॥ सर सर सौपण वीस कमलिनी छाजही। कमलिनी कमलिनी कमल पचीस विरानही ।। राजही कमलिनी कमल अठोचर सौ मनोहर दल बने । दल दलहि अपछर नहि नवरस हाव भाव सुहावने ॥ तहँ कनक किंकणि वर विचिच सु अमर मंडप सोहए। घनघंटचमर धुजा पनाका, देख त्रिभुवन मोहए ॥२॥ तिह करि हरि, चढि पायउ सुर पर वारियो । पुरहि प्रदच्छणदेतसु जिन जयकारियो । गुप्त जाय जिन जननिहि, सुखनिद्रा रची। मायापई शिशु राखि तौ जिन भान्यो सची ॥
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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