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________________ जैनपालबोधककोई भादमी है सो ठट्ठा से वोलता है इस कारण कुछ भी किसीने शक नहीं किया। जब घुटशालामें जाकर एक लाल घोडेको खोलने लगा तो फिर किसीने पूछा किकौन है ? तब चौरने फिर वही उत्तर दिया कि “ मैं चौर हूं" उसने फिर पूछा कि तू क्या करता है ? चोरने कहा कि घोडा चुरा कर ले जाता हूं। पूछनेवालेने समझा कि चरवादार (सहीस ) होगा इसलिये कुछ विशेष ध्यान नहिं दिया। फिर वह चौर घोडेपर चहकर चला तौ दरवाजे पर तथा रास्तेमें कई जनोंने पूछा कि “कौन है" तौ सवका उत्तर यही देता गया कि "मैं चौर हूं" कहा जाता है पूछा उसे कहता गया कि घोडा चुराकर लेजाता हूं इसी प्रकार शहरमें कई जनोंने पूछा परन्तु किसीने भी चौरका संदेह नहिं किया कि यह सचमुच चौर ही है। क्योंकि सक्ने यही समझा कि-नदी पर पानी पिलानेको लेजाता है। चौरने जब देखा कि आज तो सच बोलनेसे बडा ही लाभ हुवा कि मुझे किसीने भी चोर नहीं समझा-चाहे. जो कुछ हो जाय कदापि झूठ नहिं बोलूंगा इसमकार प्रतिज्ञा को फिर भी दृढतासे धारण करके घोडेको एक निर्जन वनमें ले जाकर छिपाकर वांध दिया और आप रास्ते पर एक बड़के पेडके नीचे सोगया । इधर थोडी देरके वाद सहीस दाना देनेको लाया तौ घुडशालमें घोडा नहि देखा इधर उघर पूछताछ करने पर मालूम हुवा कि वह वास्तव में चौर
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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