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________________ तृतीय भाग। २४९ देव हुमा । देव हुये देरी न हुई यी कि अवविज्ञानके द्वारा अपना पूर्वभव स्मरण करके भगवानकी पूनाकेलिये अपने मुकुटमें मेटकका चिन्ह लगाकर चल दिया और भगवानके. पास आकर प्रतिमक्तिसे वंदना कर बैठ गया। जब राजा श्रेणिकने इसे देखा तो गौतम स्वामीसे पूछा कि हम देवके मुकुट पर जो भेकका चिन्ह दिखाई देता है इसका कारण क्या है ? क्योंकि देवोंके सुकटोंपर भेकके चिन्ह नहीं हुवा करते हैं । गौतम गणधरने कहा कि यह देव पूर्वभवमें मेढक था किंतु इसके भाव महावीर स्वामीकी पूजा करनेके थे । भाग्यसे यह कपल लिए आ रहा था परंतु रास्ते में हाथी के पैरसे कुचलकर यह देव भया है इसे पूर्वभवका स्मरण हो. गया है इसलिये अपनेको यह जतानेके लिये कि मैं पूर्वभव में मेढक था और पूजाके प्रतापसे देव हुआ हूं, अपने मुकुटपर भेकका चिन्ह धारण कर रक्खा है । राजा श्रेणिक व अन्य जन यह सुनकर बडे चकित हुए और उस दिनसे गजा श्रेणिक व अन्य भव्यजनोंने नियम ले लिया। कि हम सब विना पूजनके भोजन नहीं किया करेंगे। यह पात निर्विवाद सिद्ध है कि जो व्यक्ति चाहे गरीव हों या बनवान, भगवानकी भावोंसे पूजा करते हैं उन्हें उस अलौकिक सुखकी प्राप्ति हो जाती है जिसका वर्णन करना, बचनके अगोचर है।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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