SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ जैनवालबोधक४ । सचित्त न्याग प्रतिमा- जो ज्ञानी सम्यग्दृष्टि, पत्र, फल, त्वक ( छाल) मूल, कोंपल, बीज, सचित्त (हरे वा कच्चे) न खावे सो सचित्तविरति श्रावक है। सचित्त शग प्रतिमाघारीको कच्चे मुके गेहूं वगेरह खाने व कच्चे जलपान करनेका भी त्याग करना चाहिए । जलको या तौ विधिसे छानकर गर्म करके अथवा लोंग इलायची आदि कषायले पदार्थ डालकर वेस्वाद करके पान करें। ६ । रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा-जो ज्ञानी श्रावक रात्रि में चार प्रकार अशन, पान, खाद्य, स्वाधरूप आहार न तो आप ग्रहण करै और न दूसरेको भोजन पान करावे तथा दिनमें स्त्रीसेवनका त्याग करे सोछडी रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा है । रात्रि भोजनका त्याग तौ पहिली प्रतिमांमें भी कराया गया है परंतु वहां पर कृत कारित अनुमोदना और मन वचन कायके दोष (अतिचार ) लगते हैं परंतु छट्ठी प्रतियामें सर्वथा शुद्ध (निरतिचा त्याग है। ७ । ब्रह्मचर्य प्रतिमा- मन वचन काय कृत कारित अनुमोदनासे सर्व प्रकारकी स्त्री सेवनेका पांच अतीचार रहित त्याग करना सो ब्रह्मचर्य नामको सातवीं प्रतिमा है। ८|आरम्मत्यागप्रतिमा-मन वचन काय कृत कारित अनुमोदनासे गृहसंबन्धी प्रारम्भोंका त्याग करना सो प्रारम्भत्याग प्रतिमा है। ९ । परिग्रहत्यागप्रतिमा-जो बाहरके दशों परिग्रहों में
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy