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________________ तृतीय भाग । २४३. कर वडा प्रसन्न हुआ और पूर्व भवका स्मरण करके उनसे धर्मaaree anist ग्रहण कर लिया। उधर वह घम्मिलका जीव व्याघ्र मनुष्योंकी गंध सूंघकर उसी गुहा में आया और मुनियोंको भक्षण करनेके लिए गुफा में प्रवेश करना शुरू किया परन्तु सूकर गुहाके द्वारपर स्थित हो गया और व्याघ्र को भीतर प्रवेश नहीं करने दिया इससे व्याघू जल गया और खूब युद्ध करना शुरू कर दिया और इतना युद्ध हुआ कि आखिरको उन दोनोंका मरण हो गया। सूकरके तो परिगाम मुनिरक्षाके थे इसलिए वह तो सौधर्म स्वर्ग में देवोंसे पूज्य वडा देव हुआ और व्याघ्र खोटे भावोंसे नरकमें गया इसलिये सबको चाहिए कि अपने साधनको अभय देकर उसके बचानेका प्रयत्न करें जैसा कि सूकरके दृष्टान्तसे मालूम पडा । -:०: - ७०. श्रावकाचार ग्यारहवां भाग । -:: श्रावककी एकादश प्रतिमा वा कक्षा । श्रावकाचार यानी गृहस्थका आचार जो ऊपर के पाठों वन किया है, विषय भेदसे भिन्न २ वर्णन किया है, इस पाठ की प्रथम क्रियासे लगाकर अंत तककी क्रिया तकके क्रमसे चढ़ते हुये ११ प्रतिमा वा पद ( दरजे ना कक्षा ) माने गये हैं वे ऋपसे बताये जाते हैं ।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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