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________________ तृतीय भाग। जलके विषयमें पूछेगें तो मैं स्पष्ट हाल कह दूंगा । रूपवती. जल लेकर चली गई और राजाके शिरपर छिड़क दिया छिड़कते ही राजा विरकुल स्वस्थ हो गया। जब उग्रसेनने रूपवतीसे जळके माहात्म्यको पूछा तो उसने ठीक २ कह सुनाया। राजा यह सुनकर बडे चकित हुये और विचारने लगे कि जिपके स्नानजलका तो इतना माहात्म्य है तो उस पुत्रीका कितना न होगा इसलिये राजाने उसी समय वृषभसेनाके पिताको बुलाया और अपने साथ पपसेनाके विवाह कर देनेको कही। सेठने उत्तरमें कहा कि-महाराज में आपके योग्य तो नहीं हूं परन्तु भापकी आज्ञाका उल्लंघन भी नहीं कर सकता! हां! एक बात अवश्य है कि आप को जिनेन्द्र भगवान के आगे अष्टान्दिकाकी पूजा बडे सजधनके साथ करनी पडेगी और तमाम जंतुओंको दंघनसे मुक्त कर देना पडेगा और कैदियोंको भी छोड देना होगा। राजाने यह स्वीकार कर लिया और पासेनाके साथ विवाह कर पट्टरानी बना दिया, एवं अपना काल सुखसे उसीके साय विताने लगा। यद्यपि राजाने सबको छोड दिया या तो भी वनारसके राजा पृथ्वीचंदको उसकी अतिदुष्टता के कारण नहीं छोड़ा था, इसलिए पृथ्वीचंद्रकी राना नारायणदवाने अपने पतिको छुडवानेके लिए मंत्रियोंके साथ विचार करके बनारसमें सब जगह वृषभसेनाके नामसे दानशालायें खुलवा दी। वहां नानादेशक भिक्षुक भोजनकररानी
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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