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________________ तृतीय भाग। प्रसंग आया हो । आखिर वेचारे. अपना मन मसोस कर अपनी भूलपर पश्चात्ताप करते हुए रह गए। इसके सिवाय और करते भी क्या ? कुछ दिन बीत जाने पर एक दिन बालक सोमक समुद्रदत्तके घरके आंगनमें खेल रहा था । तव समुद्रदत्वाके मन में न जाने क्या बुद्धि उत्पन्न हुई सो उसने सोमकको बडे प्यार से अपने पास बुलाकर पूछा-मैया! वतला तौ, तेरा साथी सागरदच कहां गया है ? तूने उसे देखा है ? सोमक वालक था और साथ ही बाल स्वभावके अनुसार पवित्रहदयी था, इसलिये उसने झटसे कह दिया कि वह तो मेरे घरमें एक गढ़ेमें गडा हुआ है । बेचारी समुद्रदत्ता अपने बच्चेकी दुर्दशा सुनते ही धडामसे पृथिवी पर गिर पडी।इतनेमें समुद्रदत्त भी वहीं आ पहुंचा । उसने उसे होशमें लाकर उसके मूर्छित हो जानेका कारण पूछा । समुद्रदत्ताने सोमकका कहा हुवा हाल उसे सुना दिया । समुद्रदत्तने उसी समय दोडते हुये जाकर यह खवर पुलिसको दी। पुलिसने आकर मृत वच्चेकी सही हुई लाससहित गोपायनको गिरफतार किया। मुकद्दमा राजाके पास पहुंचने पर राजाने गोपायनके पापानुपार उसे फांसीकी सजा दी। • पापी लोग कितना ही छुपकर पाप क्यों न करें परन्तु वह छुपता नहीं, कभी न कमी प्रगट हो ही जाता है और उसका फल इसलोक और परलोकमें अनंत दुःख भोगने
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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