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________________ १६८ जैनवालवोधक साधु अपने स्थानको जाने लगे तो एक साधुका जूता नहीं । बहुत तलास करने पर नीलीने कहा- महाराज आप तो निमित्तज्ञानी हैं अपने शास्त्रसे पता लगा लीजिए । मेरे श्वसुर तो I जिस धर्मपर मुझे लाना चाहते हैं इसकी वडी प्रशंसा करते हैं परंतु आप तो अपनी जूतीको पेटमें रक्खे हुए भी पता नहीं लगा सक्ते । नीली के ऐसे वचन सुनते ही माधु बहुत घबड़ाए और इस वातकी परीक्षा के लिये एक साधुने वपन कर दिया । नीलीने जो कहा था वह बिलकुल सत्य निकला उस चमनमें कई छोटे २ टुकडे जूतीके दिखाई देते थे । विचारे साधु बहुत लज्जित होकर अपने स्थानको चले गए, किंतु घरके सब लोग नीली पर बहुत कुपित हुए और कहने लगे - तू वडी पापिनी है। सागरदत्तकी वहिनने तो यहांतक किया कि इसे कुशीलका दोष लगाकर सब जगह बदनाम कर दिया | विचारी नीली इस दोषका छुटकारा पानेके लिए मंदिरमें गई और भगवानके सामने कायोत्सर्गसे स्थिर हो कर कहने लगी कि जबतक मेरा यह अपवाद न हटेगा अन्न जलका सर्वथा त्याग है, इसके महा तपसे नगरदेवता चुभित होकर रात्रिको नीली के पास श्राया और कहने लगादेवि ! इसतरह आप अपने प्राणोंका त्याग न कीजिये । में 1 यहांके राजा व मंत्रियोंको स्वप्न द्वारा जताए देता हूं किनगरके दरवाजोंके किवाड किसी शीलव्रता स्त्रीके अंगूठे से खुलेंगे अन्यथा नहीं, ऐसा कहकर वह देव चला गया और
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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