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________________ जैनबालबोधक५४. वणिक्पुत्री नीलीकी कथा। काटदेशके भृगुकच्छ नगरमें राजा बसुपाल राज्य करते थे वहीं वणिक जिनदत्त निवास करते थे उनकी स्त्रीका नाम जिनदत्ता और पुत्रीका नीली था । नीली बढी सुंदर और रूपवती थी, उसी नगरमें समुद्रदच सेठ भी रहते थे! जिनकी स्त्रीका नाप सागरदत्ता और पुत्र का नाम सागर. दत्त था । एक समय वडी भारी पूजामें कायोत्सर्ग स्थित और संपूर्ण भाभरयोंसे भूषित नीलीको सागरदत्तने देख लिया और देखते ही वह विचारने लगा कि यह तो कोई देवता खडी हुई मालूम पडती है परंतु जब उसने अपने मित्र प्रियदरसे पूछा तो उसने कहा-यह देवता नहीं है किंतु जिनदत्त सेठकी यह पुत्री नीली है । इसके रूपको तो सागरदत्त पहिले ही देख चुका था। इसलिए वह इतना मोहित हो गया कि उसे संसारके सब पदार्थ वुरे मालूम पडने लगे इसकी नजर में नीली ही नीली दिखाई देती थी और इसी चिंतामें वह वडा दुबला पतला हो गया था। उसकी वांछा यही रहती थी कि में कैसे इसे पांऊं ? कुछ दिन. वाद सागरदत्तके पिता समुद्रदत्तको जब यह खवर पडी तो उसने कहा कि यद्यपि जिनदत्त जैनीके सिवाय किसीको अपनी पुत्री न देगा। परंतु मैं ऐसा उपाय करता हूँ जिसमें
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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