SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ जैनवालवोंधक-. दुष्ट पुत्र दोनोंको दृढ बंधनोंसे बांध कर समुद्र में डाल दो" राजभृत्योंने तत्काल राजाज्ञाका पालन किया अर्याद दोनोंको बांधकर समुद्रमें डाल दिया. किंतु चंडालके दृढ अहिंसावन के प्रभावसे जलदेवताओंने उन दोनोंकी रक्षा की अर्थात मणिमंडित नौकापर रत्नजडित सिंहासनपर तो चंडाल बैठा है और राजपुत्र उसपर चमर दुरांता है और जलदेवता तथा अन्य देवगण भाकाशमेंसे चंडालके अहिंसाव्रतको धन्य २कहते हुये पुष्पवृष्टि करते हैं. इसप्रकार अहिंसावतके प्रभाव को देखकर महाबल राजाने भी उस चंडालकी अनेक तरह प्रशंसा की। . ___चंडाल भी एक दिनके अहिंसा व्रतका प्रत्यक्ष महा फल देखकर सम्यक्त्व सहित पंचाणुव्रत और सप्तशील धारण करके बूती श्रावक हो गया। उसके व्रतका प्रभाव देखकर हजारों नगरनिवासी स्त्रीपुरुषोंने मी अहिंसादि पंचाणुव्रत धारण किये. तबहीसे जैनशास्त्रों में इस चंडालकी कथा अहिसावतके प्रभाव दिखानेके लिये यत्र तत्र उदाहरणार्थ. लिखी है। हे बालको! तुमको भी मनवचनकायसे यथाशक्ति उस जीवोंको (चलते फिरते जीवोंको) मारने वा किसी मकारकी पीडा देनेका त्याग करना चाहिये क्योंकि जैनियोंका यही एक सर्वमतसम्मत प धर्म है। Baractée
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy