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________________ तृतीय भाग । १६३ परिग्रह परिमाण व्रत और पापमें प्रसिद्ध होनेवालोंका नाम व गृहस्थ के अष्टमूल गुण । , जयकुमारने इस वर व्रतको पालन करके सुख पाया । 'वैश्य 'मूळ मक्खन' नहि पाला 'हाय द्रव्य' कर दुख पाया || पांच अणुव्रत कहे इन्ही में, मद्य मांस मधुका जो त्यागः । मिल जावै तौ आठ मूलगुण, हो जाते हैं गृही-सुहाग | जयकुमारने इस परिग्रहपरिमाण व्रतको पालन कर सुख पाया है और मूल मक्खन नामके लुब्धक वैश्यने अति - लोभ करके इस व्रत पालने में दुःख उठाया है । इन पांचों अणुव्रतोंको धारण करने और यद्य मांस - मधु इन तीन श्रभक्ष्योंका त्याग करनेसे श्रावकके आठ मूल - गुण हो जाते हैं ॥ ५५ ॥ 93396EÇE ४४. यमपालनामा चंडालकी कथा | GODDESEe पूर्वकालमें सुरम्य नामके देशमें पोदनपुर नापका नगर था. उसका राजा महाबल था. उसो नगरमें एक यमपाळ - नामका चंडाल रहता था. जीवोंको हिंसा करना ही उसका - रोजगार था । एकदिन उस चंडालको सर्पने काट खाया सो उसे परा जान उसके कुटुंबियोंने दग्ध करनेको नगरसे दूर श्मशान भूमिमें लाकर रक्खा था. उसी जगहें सर्वोपधिद्धिके धारक
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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