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________________ जैनवालबोधक गये । उसको बहुत कुछ कहा । उसने कहा कि मैंने ७ दिन का राज्य बलिको दे दिया है वही उपसर्ग करता है । तब विष्णुकुमार बलि राजाके पास गये, जहां कि वह सबको इच्छित दान दे रहा था. विष्णुकुमारने बापनरूप धारण करके दुटी बनानेको अपने पांवसे तीन पेंड जमीन मांगी। दलिने तत्काल ही दी। विष्णुकुमारने विक्रिया ऋद्धिसे बहुत बडा शरीर बनाकर एक पांव दक्षिण तरफके मानुपांतर पर्वत पर रक्खा और एक पांव सुमेरु पर्वतपर रखारदसरा शव उचर के मानुषोत्तर पर्वतपर रवाना, और तीसरे पांबसे देवों के विमानोंको क्षोभित करके बलिकी पृष्ठपर रखके उस को काबू कर लिया अर्थात् बलिको बांध लिया । तब देवतामोंने भाकर मुनियोंका उपसर्ग निवारण किया, पूना बंद है । पनराजा और चारों मंत्री, विष्णुकुमार अपनाचायांदि मुनि महाराजोंके चरणों में पडे, क्षमा प्रार्थना करके अपराध क्षमा कराया सबने जैनधर्म धारणकर धारक के १२ व्रत ग्रहण किये । मुनियोंके कंठ धुपैसे फट गये थे, बड़ी तकलीफ थी, सो नगरके लोगोंने उस दिन दयकी खीरके भोजन तैयार किये और सब मुनियोंको आधार १मठाई दीपके चारों तरफ आधे पुष्कर द्वीपनें कोटकी तरह एक पर्वत है वहाते आगे विद्याधर मनुष्य भी नहीं जा सकता, इस कारन उसको मानुषोतर पर्वत कहते हैं ।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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