SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनपालबोधक चरणानुयोगका लक्षण | • 1 गृहस्थियों का अनगारोंका, जिससे चारित हो उत्पन्न | चढे और रक्षा भी पावे, हे चरणानुयोग प्रतिपन्न | मित्रो इसका किये आचरण, चरित गठन हो जाता करते हुये समुन्नति अपनी, जीव महा सुख पाता है ॥ ४० ॥ जिसमें गृहस्थ और मुनियोंके चारित्रकी उत्पत्ति वृद्धि और रक्षा उपायका वर्णन हो उसे चरणानुयोग कहते हैं ॥ ४० ॥ -१४२ द्रव्यानुयोगका लक्षण | जीव का स्वरूप ऐसा, ऐसा है अजीवका तत्व | पाप पुण्यका यह स्वरूप है, बंध मोक्ष है ऐसा तत्र ॥ इन सबको द्रव्यानुयोगका, दीप भली विधि बतलाता / जो श्रुतविद्या के प्रकाशको, जहां तहां पर फैलाता ॥ ४१ ॥ जिसमें जीव अजीव पुण्य पाप बंध मोक्ष भादि तत्वों का वर्णन हो उसे द्रव्यानुयोग कहते हैं ॥ ४६ ॥ सम्यक्चारित्रका स्वरूप । मोह तिमिरके हट जाने पर, सम्यग्दर्शन पाता है । उसको पाकर साधु समिकिती, श्रेष्ठ ज्ञान उपजाता है | .. फिर धारण करता है शुचितर, सुखकारी सम्यक चारित्र | - रहे राग ष्यों नहीं पास कुछ और द्वेष नश जावै मित्रः ४२ - राग द्वेषके नश जानेसे, नही पाप ये रहते पांच
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy