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________________ १०३ तृतीय भाग। के पास दीक्षा लेकर तपस्या करके केवलज्ञान प्राप्त होकर कैलास पर्वतपर देह विसर्जनकर अंजन चौर निरंजन (मुक्तवा सिद्ध) हो गये। २८. पुद्गल परमाणु। Өәәәeeee हमारे जैनसिद्धांतमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन ६ द्रव्योंमेंसे युगल द्रव्यको मूर्तिक जड माना है, इसके सबसे छाटे खंडको (जिसका फिर खंड नहिं हो सकै ) परमाणु कहते हैं और दो तीन चार आदि परमाणुओंके सूक्ष्म स्कंधोंको अणु वा दूधणुक स्कंध कहते हैं । इन सब परमाणुओंमें रूप रस गंध स्पर्श ये ४ गुण मुख्य और उत्तर गुण २० होते हैं और इन परमाणुओंमें न्यूनाधिक मिलकर अनंत प्रकारकी पर्याय ( अवस्थायें हालतें) पैदा करनेकी शक्ति होती है । दुनिघांमें जितने पदार्थ दृष्टिगोचर होते हैं वे इन्ही पुद्गल परमाणुभोंके नानाप्रकारके परिणमन से पैदा हुये है। आज कलके वैज्ञानिक विद्वानोंने अपनी खोजसे अणुके भेद विशेषको एक ईयर नामका सूक्ष्म पदार्थ निर्णय किया है वह इंद्रियोंके अगोचर जगद्व्यापी है । किसी २ विद्वानका मत है कि यही एक आदिम अर्थात् मूळपदार्थ है इसीकी
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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