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________________ ५० ] जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास सुपार्श्व, वडे भाई का नाम नन्दिवर्द्धन और बड़ी वहिन का नाम सुदर्शना था।' ___ भगवान के माता-पिता पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमणो के उपासक थे, उन्होने वहुत वो तक श्रमणोपासक के आचार का पालन कर अत मे छहकाय के जीवो की रक्षा के लिए आहार-पानी का त्याग(अपश्चिम-मारणातिक सल्लेखना) करके देह त्याग किया। इसके बाद वे अच्युत कल्प नामक १२ वे स्वर्ग मे देव हुए। वहाँ से वे महाविदेह क्षेत्र मे जाकर अन्तिम उच्छ्वास के समय सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त होगे तथा सव दुखो का अत करेगे ।२ गृहजीवन ___महावीर के माता-पिता जिस पार्श्वनाथ की पम्परा के अनुयायी थे, उसमे त्याग और तप की भावना प्रवल थी, जो कि महावीर को जन्मकाल से प्राप्त हुई। अत वाल्यकाल व्यतीत होने के वाद जव महावीर के सामने विवाह का प्रस्ताव आया तो उन्होने इस पर अपनी अरुचि प्रकट की, जो कि स्वाभाविक ही थी। किन्तु विनयशील महावीर अपने माता-पिता के आग्रह को न टाल सके और विवाह करना पडा । उनकी पत्नी का नाम यशोदा था जो कि कौडिन्य गोत्र की थी। यशोदा से महावीर को एक पुत्री प्राप्त हुई, जिसके दो नाम थे-अनवद्या तथा प्रियदर्शना। ___यद्यपि महावीर अपनी पूर्व प्रतिज्ञानुसार २८ वर्ष की अवस्था मे ही गृह त्याग कर देना चाहते थे किन्तु अपने ज्येष्ठ भ्राता के आग्रह से उन्होने गृहवास की अवधि दो वर्ष और वढा दी। इन दो वो मे महावीर ने घर मे भी त्यागी और तपस्वी जीवन को व्यतीत किया। गृह त्याग तथा साधक जीवन महावीर ने ३० वर्ष गृहस्थाश्रम मे रहकर अपने माता-पिता का १. माचाराग २ । १५ । १७७ २ आचाराग, २ १५ १७८ ३ वही, २ १५ १७७
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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