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________________ द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष [ ४३ पारवपित्यिक निर्ग्रन्थ केशी तथा महावीर के शिष्य गौतम के परस्पर मिलन - वार्ता और अत मे केशी के महावीर सघ मे सम्मिलित होने की बात हम पहिले ही कह चुके है । भगवती सूत्र मे कुछ ऐसे थेरो ( स्थविरो) का वर्णन मिलता है जो कि राजगृह में महावीर से मर्यादापूर्वक मिले, कुछ आध्यात्मिक प्रश्न किये, शान्तिपूर्वक उनका उत्तर सुना, और महावीर की सर्वज्ञता की प्रतीति कर उनके शिष्य वन गये । १ आवश्यक चूर्णि मे ऐसे अनेक पावपित्यिको का वर्णन मिलता है जो कि महावीर के भ्रमण काल मे उपस्थित थे । उप्पल ऐसा ही एक पार्श्व का अनुयायी था, जिसने कि साधु-जीवन की कठिन तपस्या से घवडाकर गृहस्थ धर्म को स्वीकार कर लिया था और फिर "अट्ठियागाम" मे भविष्यवक्ता (नमित्त) का व्यवसाय कर अपना जीवन व्यतीत करने लगा था । सीमा और जयन्ती नाम की उसकी दो वहिनो ने भी पार्श्व का धर्म स्वीकार किया था, किन्तु उसकी कठोरता से घबडाकर श्रमणधर्म छोडकर वैदिक धर्म को अपना लिया था । 3 तुगियाग्राम पावपित्यिक थेरो का केन्द्र माना गया है । वहाँ पर पार्श्व के अनुयायी साधु ५०० का सघ बनाकर भ्रमण किया करते थे । उस ग्राम के निवासी पावपित्यिक श्रावक उनके पास धर्म-श्रवण के लिए जाया करते थे और उनसे खूब तत्त्व चर्चा किया करते थे । एक वार राजगृह मे भगवान् महावीर ने गौतम द्वारा पार्श्वपित्यिक थेरो और श्रावको की धर्म चर्चा की बात सुनी थी । ४ नायाधम्मकहाओ मे वर्णन है कि श्रमणोपासका काली को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने आर्यिका पुष्पचूला के निकट भगवान् पार्श्व के धर्म को स्वीकार किया ।" १ २ ३ ४ ጋ भगवती सूत्र, ५९ २२६ आवश्यक चूर्ण, पृ० २७३ वही, पृ० २८६ भगवती सूत्र, २५. नायाधम्मकहाओ, २१ पृ० २२२
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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